शनिवार, 14 जुलाई 2012

"चिड़िया" पर कुछ बिखरे विचार

           दोस्तो, दसवीं कक्षा की पहली इकाई की कविता चिड़िया पर ज़रा ध्यान दें। हालाकि यह कविता अतिरिक्त वाचन केलिए है पर लगता है, इसे और भी गंभीरता से लेने की ज़रूरत है। इस पोस्ट के पीछे का उद्देश्य भी वही है।  
            कविता, बौद्धिक तल पर कोई आघात न पहूँचाते हुए पाठकों से सीधा संवाद करती है। आशय या भाव को समझने में कठिनाई नहीं महसूस होते हैं। कविता में प्रयुक्त शब्दों में कोई निगूठ अर्थ की गुजाइश हो, ऐसा भी नहीं प्रतीत होता। इकाई की समस्या की चर्चा में कविता की भागीदारी नगण्य है।
          लगता है अब, इकाई से बाहर निकल कर कविता पर विचार-विमर्श करना पड़ेगा। मिश्र जी की चिड़िया केवल एक आहत पक्षी नहीं लगता, वह और भी कुछ कहने की कोशिश करती है। कविता को बारीकी से देखें। चिड़िया,घोंसला,जली हुई ड़ाली और आदमी - कविता के इन मूल शब्दों का विश्लेषण करें और इनके बीच का संबंध ढूँढें। यहाँ हमने युद्ध,दंगा-फसाद,प्राकृतिक आपदाएं,आतंकवाद आदि से अपने सबकुछ छोड़ कर पलायन करनेवाले साधारण जन की नज़रिए से चिड़िया को देखने की कोशिश की है। आशा है आप कविता को एकाधिक परिप्रेक्ष्य में देखें,विश्लेषण करें। और षेयर भी करें।

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