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गुरुवार, 30 अगस्त 2012
सागरिका: पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का पंद्रहवां दिन
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रविवार, 26 अगस्त 2012
भगवत रावत के निधन पर... विष्णु खरे
भगवत रावत का जाना......
विष्णु खरे
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हिंदी साहित्य जगत बरसों से वाकिफ था कि भगवत रावत गुर्दे की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. उनका यह लंबा संघर्ष उनकी ऐहिक और सृजनात्मक जिजीविषा का प्रतीक था और कई युवतर,समवयस्क और वरिष्ठ लेखकों को एक सहारा, उम्मीद और प्रेरणा देता था.पिछले दिनों तो ऐसा लगने लगा था कि उन्होंने रोग और मृत्यु दोनों पर विजय प्राप्त कर ली है. लिखना तो उन्होंने कभी बंद नहीं किया, इधर वे लगातार भोपाल की सभाओं, संगोष्ठियों और काव्य-पाठों में किसी न किसी वरिष्ठ हैसियत से भाग ले रहे थे. उनसे अब उनकी तबीयत के बारे में पूछना चिन्तातिरेक लगने लगा था.
जो कई पत्र-पत्रिकाओं में और सार्वजनिक आयोजनों में प्रतिष्ठित कवि और एक हड़काऊ किन्तु स्नेहिल बुजुर्ग की तरह सक्रिय हो, उसकी मिजाजपुर्सी एक पाखण्ड ही हो सकती थी. कम से कम मैं निश्चिन्त था कि अभी कुछ वर्षों तक भगवत का कुछ बिगड़नेवाला नहीं है. इसलिए उनकी मृत्यु अब नितांत असामयिक और एक बड़ा सदमा लग रही है.
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